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जी हाँ, एक और युवा माता-पिता के अरमानों पर कुर्बान हो गया. अपने माता पिता के अरमानों की कीमत उसने अपनी जान देकर चुकाई.उसकी लाश पर रोते कलपते उसके माता पिता को भी नहीं मालुम कि उनका बेटा उनके अरमानों पर कुर्बान हो गया है.
रोहन पढाई लिखाई में होशियार था. उसका एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कोलेज में एडमीशन भी हो गया.इंजीनियरिंग के पहले सेमेस्टर में उसकी कुछ विषयों में बैक आ गयी, जो एक सामान्य सी बात है. वह अगले सेमेस्टर में कवर भी कर लेता लेकिन उसके महत्वाकांक्षी माता पिता को यह कहाँ मंजूर था. आये दिन उनका क्रोध रोहन पर बरसता रहा.
रोहन जो सिगरेट का लती पहले से ही था अब ड्रग्स भी लेने लगा.इंजीनियरिंग के तीसरे साल में आते आते ड्रग्स लेना उसकी दिनचर्या में शामिल हो गया.कल रात ड्रग्स का सेवन भारी मात्रा में करने के कारण वह बेहोश हो गया.उसको अस्पताल में ले जाया गया, जहाँ आज उसकी मृत्यु हो गयी. उसके सपने देखने के दिन शुरू ही हुए थे और वह गहरी नींद में सो गया, कभी न जागने के लिए.
आज यदि उसके माता पिता से पूछा जाये तो बच्चे को ही दोष देंगे.लेकिन मेरी नज़र में वह भी कम दोषी नहीं हैं. रोहन एक कुशाग्र बुद्धी युवक था जिसने एक ऐसे इंजीनियरिंग कालेज में अपनी योग्यता से एडमीशन लिया था, जिस कालेज में एडमीशन पाने के लिए एक आम छात्र तरसता है.उसपर इस कदर दबाव डालने के बजाय उसको प्यार से समझाना चाहिए था
उसकी समस्या उससे पूछनी चाहिए थी. यदि वह समस्या बताता तो उसका यथासंभव उपाय भी सुझाना चाहिए था. यदि माता पिता इस कार्य में अपने आपको असमर्थ पाते तो काउंसलर की सहायता भी ले सकते थे.इन उपायों से उनका बच्चा तो सुरक्षित रहता.
मेरा ड्रग्स लेनेवाले युवाओं से विनम्र अनुरोध है,”कृपया यथाशीघ्र ड्रग्स लेने की इस बुरी लत को त्याग दें, जीवन एक अमूल्य उपहार है इसको व्यर्थ में न गवाएं.”
यदि मेरे इस अनुरोध को किसी एक व्यक्ती ने भी मान लिया तो यह रोहन के प्रति एक सच्ची श्रद्धान्जलि होगी.
(सेमेस्टर इंजीनियरिंग का कोर्स चार साल का होता है. प्रत्येक साल में दो सेमेस्टर होते हैं. एक सेमेस्टर की अवधि छः माह होती है और प्रत्येक सेमेस्टर के अंत में इम्तेहान होते हैं. यदि एक सेमेस्टर में कोई किसी विषय में फेल हो जाये तो उस विषय का इम्तेहान वह अगले सेमेस्टरों में दे सकता है)
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