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वैलनटाइन डे नज़दीक है. चारों ओर प्यार करने वालों की धूम मची है. बाजार तरह-तरह के उपहारों, कार्डों एवं गुब्बारों से सुसज्जित हो चुका है.प्रेम के इस दिन की मिठास के साथ-साथ कुछ कड़वी यादें भी मेरे अंतर्मन में अंकित हैं.
कुछ वर्षों पूर्व हम लखनऊ से दिल्ली रहने आये थे.वैलनटाइन डे के दिन हमारा सपरिवार दिल्ली घूमने का प्रोग्राम बन गया. थोड़ा इधर-उधर घूमने के बाद अचानक हमारी नज़र एक पार्क पर गयी. चूंकी पार्क के आस-पास ऊंची-ऊंची दीवारें और एक गेट था इसलिए अंदर के माहौल से हम अनभिज्ञ थे.हमने गेट की ओर रुख किया. जैसे ही हम गेट के नज़दीक पहुंचे तो एक व्यक्ती ने हमसे पैसे की मांग की और टिकट दे दिया. शहर में नए होने के कारण हमें लगा कि इस पार्क में टिकट लगता होगा.खैर हम टिकट लेकर आगे बढे. अभी हम दस-पन्द्रह कदम ही चले होंगे तो हमें एक पार्क मिला जिसमे करीब 20-25 जोड़े बड़ी बेशर्मी से अश्लील प्रेम का प्रदर्शन कर रहे थे.शर्म से हमारी आंखें ऊपर नहीं उठ पा रही थी. ऊपर से जुल्म यह हमें उस पार्क के चारों तरफ से घूमने के बाद ही बाहर निकलने का रास्ता मिलना था. एंट्री वाली जगह से हम बाहर नहीं निकल सकते थे.जैसे तैसे हमने वह रास्ता पार किया और इससे पहले कि कहीं और हमको वैसा नज़ारा मिले हमने अपने घर का रुख किया.तब से आज तक यदि मुझे इस दिन घर से बाहर निकलने में मुझे कुछ संकोच होता है.
अब यहाँ प्रश्न यह उठता है कि प्रेम के इस वीभत्स रूप का सार्वजनिक प्रदर्शन क्या उचित है?
क्या इन प्रेमी जोड़ो का समाज के प्रति कोई भी उत्तरदायित्व नहीं है?
प्रेम एक उपासना है, एक अहसास है जो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. कोई किसी को पसंद करता है,अपनी भावनाएं व्यक्त करता है.लेकिन इस अश्लीलता को क्या प्रेम का नाम दिया जा सकता है?
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