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“खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है”
उर्दू एवं फारसी के कवि मुहम्मद इकबाल के यह शब्द निसंदेह जोश का संचार करने वाले हैं.
हममें से कितने लोग इन शब्दों को हकीकत में बदल पातें हैं यह विचारनीय मुद्दा है. प्रत्येक व्यक्ति सफलता चाहता है यह अलग बात है कि सफलता का अर्थ अलग-अलग होते हैं, कोई अथाह पैसा कमाना चाहता है, कोई योग्यता अर्जित करके नाम कमाना चाहता है.कुछ सफल हो पातें हैं कुछ नहीं, जो सफल नहीं हो पाते वह भाग्य या साधन को दोष दे देते हैं लेकिन क्या भाग्य या साधन को दोष देना सही है?
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