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दुल्हन ही दहेज है

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आए दिन अखबारों में खबर छपती रहती है, कहीं जलाकर, कहीं गला घोंटकर चंद पैसों के लिए बहू को मार डाला. हमारे लिए यह सिर्फ एक खबर मात्र है जो आज पढ़ी कल भूल गए, लेकिन उस माता-पिता से पूछिए जिन्होंने अपनी बेटी को पालपोसकर इतना बड़ा किया और बड़े अरमानो से उसकी शादी की और उसके सुखी जीवन की कामनाओं के साथ उसे विदा किया. यही नहीं कई बार वो बेटी अपने पीछे बच्चे भी छोड जाती है.
आपको क्या लगता है उस लड़की की हत्या के लिए क्या सिर्फ ससुरालवाले जिम्मेदार हैं, उसके मायकेवाले नहीं तो मेरी नज़र में आपकी सोच गलत है. लड़की जब से पैदा होती है तभी से माता-पिता के दिमाग की सोच होती है इसे तो दूसरे घर जाना है, ठीक-ठाक पढ़ा दें, थोड़ा पैसा इकट्ठा कर लें, मकान खरीद लें कुछ नहीं होगा तो इसको बेचकर उसकी शादी कर देंगे. कोई अच्छा सा घर देख कर शादी कर दें. गोया एक बोझ हमारे सर पर आ गया है उसको एक उचित व्यक्ति या घर परिवार देखकर उतार दें.
ऐसे माता-पिता से मैं एक बात पूछना चाहती हूँ आप अपनी बेटी को यदि बोझ समझेंगे तो यदि दूसरा उसे बोझ समझता है तो क्या गलत करता है?
मेरे विचार से लड़की जब थोड़ी समझदार होने लगती है तो उसको अपने बलबूते पर ख्यातिप्राप्त महिलाओं का उदाहरण देना चाहिए. इसके साथ ही उसको विश्वास दिलाना चाहिए कि तुम इससे भी बेहतर बन सकती हो.
अक्सर महिलाएं लड़की के थोड़ा सा बड़े होते ही उसको खाना बनाना, सिलाई-कढाई करना इत्यादि के मापदंड पर तौलने लगती हैं जबकि यदि आपकी बेटी योग्य हो जाये तो इससे बेहतर कुछ और हो ही नहीं सकता है. बचपन से ही हमें एक लक्ष्य बनाना चाहिए कि बेटी को क्या बनाना है उस दिशा में प्रयास करना चाहिए.हाँ बेटी के कैरियर के लिए उसकी राय जाननी भी आवश्यक है.
बेटी यदि अपने उद्देश्य को पाने के लिए यदि किसी कोचिंग सेंटर में दाखिला लेना चाहती है तो यह सोचकर कि फीस बहुत ज्यादा है, आगे शादी के लिए भी पैसा बचाना है उसे रोक मत दीजिएगा. यदि लड़की योग्य होगी तो लोग हाथों-हाथ रिश्ता मांगने आयेंगे.
अंत में लड़की को योग्य बनाना है या सिर्फ दहेज इकट्ठा करके उसकी शादी करना है फैसला आपका ही है. आखिर वह आप का ही अंश है.

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