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दिल्लीवालों का दिल है मेट्रो

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आज मुझे किसी काम से कॅनॅट प्लेस जाना था| बस सीधे पास के मेट्रो स्टेशन का रुख़ किया और कुछ ही मिनटों में कॅनॅट प्लेस पहुँच गयी इसके साथ ही मुझे याद आया अभी कुछ समय पहले ही यदि मुझे कनाटप्लेस जाना होता था तो कई बार तो सड़कों के जाम और प्रदूषण के कारण जाने का प्रोग्राम ही रद्द कर देती थी|
सच है मेट्रो ने नियमित रूप से सफ़र करने वालों का सफ़र बहुत ही आसान बना दिया है| दिल्ली की जनसंख्या का काफ़ी बड़ा हिस्सा अपने कंधों पर उठा लिया है|
दिल्ली का यह रूप बहुत ही अच्छा है और ई. श्रीधरंजी बधाई के पात्र हैं|
77-वर्षीय पदम विभूषण से सम्मानित ई. श्रीधरन ने सीमित बजट एवं समय से पूर्व दिल्ली मेट्रो के प्रॉजेक्ट को पूरा किया एवं दिल्ली के सफ़र को आसान बनाया|
श्रीधरंजी कोंकण रेलवे के प्रॉजेक्ट को पूरा करने के बाद पदंश्री की उपाधि से पहले ही सम्मानित हो चुके हैं|
उनका जन्म 11 जुलाई 1932 में केरल के एक गाँव में हुआ था| उन्होनें इंजिनियरिंग की परीक्षा गवर्नमेंट इंजिनियरिंग कॉलेज, काकीनाडा से उत्तीर्ण की| उसके पश्चात उन्होनें सन् 1954 में भारतीय रेल को प्रोबेशनरी असिस्टेंट इंजिनियर के रूप में ज्वाइन किया| श्रीधरंजी पूर्व चीफ इलेक्शन कमिशनर टी.एन. सेशन के सहपाठी भी रह चुके हैं|
सन् 1970 में उन्होनें डेप्युटी चीफ इंजिनियर के रूप में कोलकाता मेट्रो का प्लान एवं डिज़ाइन बनाया, जो कि भारत की प्रथम मेट्रो थी|
दिल्ली में मेट्रो निर्माण के दौरान हुए हादसे की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए उन्होनें अपने पद से त्याग पत्र दे दिया|
श्रीधरन प्रतिदिन सूर्योदय से पहले उठ जाते हैं| उनकी दिनचर्या में मेडिटेशन, भागवत गीता पढ़ना, एवं योगा करना शामिल है|
एक बार सी.एन.एन. आई बी एन पर एक इंटरव्यू के दौरान उन्होनें बताया था की उनकी आय का काफ़ी बड़ा हिस्सा चॅरिटी में जाता है|

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